प्राचीन भारत में "भवन निर्माण" कला बड़ी ही उच्च कोटि की है। आगरा के ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, बुलंद दरवाजा और बीजापुर के गोल गुंबद आजकल के कलाकार भी लोहा मानते हैं।इतने भारी भारी पत्थर बिना किसी मशीन की सहायता के इतनी ऊंचाई तक कैसे पहुंचाएं गए यह सोचकर आजकल के कारीगर भी दंग रह जाते हैं।
भारत की भवन निर्माण कला एक बहुत ही सुंदर नमूना बीजापुर का गोल गुंबद है।

 इस गुंबद को बीजापुर के शासक मोहम्मद आदिल शाह ने 1627 में गद्दी पर बैठा था, बनवाया था। इस विशाल समाधि के आगे इसके चारों ओर की सभी चीजें तुचछ लगती है।
18 हजार 110 वर्ग फुट क्षेत्रफल का फर्श छत से ढका हुआ है, जिसके सहारे के लिए कोई भी खंभा नहीं है। संसार में अकेला कोई भी गुंबद इतना बड़ा नहीं। रोम नगर के विश्वविख्यात देव-मंदिर का फर्श भी केवल 5635 वर्ग फुट छत से पटा हुआ है।
 इस समाधि का भवन वर्गाकर है।यह बड़ी ऊंची चहारदीवारी से घिरा हुआ है। ये चारों दीवारें की आठभुजी मिनारो से मिला दी गई है। इन्हीं सबके ऊपर यह विशाल अरदधगोलाकार गुंबद बना है।

 इन्हीं मेहराबो के सहारे इतनी बड़ी छत ठहरी हुई है। इस इमारत की बनावट को देखकर अचरज होता है। समाधि के भीतर की चारों तरफ 22 फुट चौड़े बरामदे हैं। इन बरामदो की छतें भी 106 इंच की ऊंचाई पर मेहराबों के सहारे पाटी गई है ।मीनारों के ऊपर चढ़ने के लिए उन्होंने जीने हैं। भवन के बीचो बीच एक ऊंचे चबूतरे पर नकली समाधिया बनी है। असली कब्र तो तहखाने के भीतर 204 वर्ग फुट के विस्तार में है।
फर्श से गुंबद की चोटी की ऊंचाई 267 फुट 6 इंच है।गुंबद के भीतर का व्यास 124 फुट 5 इंच और बाहर का 144 फुट 5 इंच है। इस गुंबद की मोटाई 10 फुट है किंतु उपर जाकर 6 फुट रह गई है।सारी इमारतों में ईट, पत्थर चूने और लकड़ी का ही प्रयोग किया गया है। इस गुंबद की विशेषता इसका ध्वनि- गुण है।प्रति दिन हजारों दर्शक इस गुंबद को देखने आते हैं और जादू भरी ध्वनि सुनकर चकित रह जाते हैं। आप किसी भी जगह पर आवाज दीजिए,तुरंत आपका स्वर बड़े वेग से दिवारो के सहारे दोनों और दौड़ेगा और उस स्थान के ठीक सामने वही आवाज जोर से आएगी।

बहुत प्राचीन होने से इस गुंबद के धरातल में स्थान-स्थान पर टूट-फूट हो जाने के कारण ध्वनि- दोष होने लगा था,किंतु भारत सरकार ने लाखों रुपया खर्च करके स्मारक की मरम्मत करा दी.